2011

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December 31, 2011

गुजर गया वो साल जो 2011 था.


"बस इसी उम्मीद मे सदिया गुज़ार दी हमने,
गुज़रे साल से शायद ये साल बेहतर हो"

आज हर तरफ लोगो मे जोश है की नये  साल का स्वागत कैसे करें? हर कोई कुछ नया करना चाहता है ऐसे जैसे अब ये साल आएगा तो फिर जाएगा ही नही? किसीके पास वक़्त नही की गुज़रे साल के बारे मे बात करे उसे कोई नही याद करना चाहता जो हमारे साथ 365दिन रहा, जिसके साथ हमने जिंदगी के कई नये आयाम देखे, जिसने हमे रुलाया, हासाया तो कभी सोचने को मजबुर किया | 
2011 ने हमे बहुत कुछ दिया इसी साल हमने क्रिकेट की बादशाहत हासिल की तो दूसरी ओर कामनवेल्थ गेम और फार्मूला वन रेस को सफलता पूर्वक संपन्न करा के International Media मे छा गये, इसी साल हमने देखा की बिना सिर, पैर की कहानी वाली फ़िल्मे अच्छे प्रचार की वजह से सिर्फ़ सुपरहिट ही नही बल्कि अपने लागत का कई गुना अधिक पैसा बटोर सकती है, बड़े पर्दे के साथ छोटा परदा भी खूब चर्चा मे रहा कभी पूनम पांडे, कभी सन्नी लिओन तो कभी सुशील कुमार को लेके, सामाजिक परिद्रिश्य की बात अगर करे तो अभी तक सत्याग्रह, अनशन जैसे शब्दो को किताबों मे पढ़ने वाली पीढ़ी ने 2011 मे न सिर्फ़ इन्हे समझा बल्कि उसका हिस्सा भी बने| भारत दक्षिण एशिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र है, साल 2011 ने इसकी तस्दीक़ की| विदेशो से हमारे रिश्ते बहुत अच्छे बने अफ़ग़ानिस्तान ने भारत के साथ कूटनीतिक साझेदारी की, 4-अक्टूबर-2011 तो ऐतिहासिक दिन रहा जब विदेशी फौज अफ़ग़ानिस्तान से वापस जारहे थे और भारत-अफ़ग़ानिस्तान संधि पर दस्तख़त कर रहे थे | 
पिछ्ले 10 साल से आतंक का पर्याय बन चुके 'ओसामा बिन लादेन' जिसको पकड़ना मुस्किल ही नही नामुकिन सा था उसका अंत भी 2011 मे ही हुआ |
कहते है सुख और दुख का चोली दामन का साथ है दोनो एक दूसरे के बिन अधूरे है ऐसी ही कुछ दुखद घटनाए जो साल 2011 के साथ है| 
इसी साल 1 साल मे भूकंप के 3से अधिक झटके आए, मुंबई,देल्ही मे आतंकवादी हमले(जो शायद आगे भी होते ही रहेंगे) हुए, आम जनता महँगाई और भ्रस्टाचार से त्रस्त होके सड़क पर उतर आई जिससे हमारे देश की छॅबी खराब हुई,  भ्रस्टाचार के मामले सबसे अधिक इसी साल सामने आए, कई मशहूर और चहेते लोग (सत्य साई बाबा, एम ऐफ हुसैन, सम्मि कपूर, देव आनंद, जगजीत सिंह, श्री लाल शुक्ला, सत्यदेव दूबे, इंदिरा गोस्वामी, भूपेन हजरिका, पटौदी) हमारा साथ छोड गये |

खैर जो बीत गया वो कल था जो हमे बहुत कुछ सीखा गया जिंदगी का सच भी शायद यही है जो बीत रहा है उसे भूलके उम्मीद का दामन पकड़े आगे बढ़ो, उसे कोई याद नही रखता जो अतीत के पहलू मे रहता है इसलिए अगर हम चाहते है की लोग हमे अतीत समझ के भुला न दें तो हमे बिना थके भविश्य के साथ चलना पड़ेगा |

तो चलिए इसी उम्मीद के साथ हम नये साल का स्वागत करे की वो हमारे लिए नयी उपलब्धिया लाएगा |


 "गुल्लक के सभी पाठको को नव वर्ष 2012 की हार्दिक शुभकामनाए"

December 22, 2011

एक दलित मसीहा ऐसे भी..

क्या आप को मालूम है इस देश मे अपने आपको दलितो का मसीहा कहने वाले और लोकपाल ...मे आरक्षण की मांग करने वाले राम विलास पासवान की शादी जाति के रिवाज के अनुसार १५ साल की उम्र मे समाज की ही एक लड़की के साथ हों गयी थी .. वो रामविलास पासवान के साथ आठ सालो तक रही ..बाद मे रामविलास पासवान IAS मे चयनित हों गए और अपनी दलित पत्नी को छोडकर एक सवर्ण रीना सिन्हा से शादी कर ली .

उनकी पहली दलित बीबी आज भी गांव मे घास काटकर और जानवर चराकर अपना गुजारा करती है|

रामविलास पासवान जी की जो दूसरी नयी नवेली पत्नी हैं वो विजय शर्मा की बहन हैं. अब विजय शर्मा कौन हैं ये सवाल आपके मन में उभरेगा. तो जनाब विजय शर्मा जेवीजी फाईनांस कंपनी के मालिक थे और इस कम्पनी में पैसा जमा करने वाले लोगों का करोड़ों रुपया डकार कर गायब हो गए. इस कम्पनी के उदघाटन समारोह में राम विलास जी गए भी और फीता भी उन्होंने ही काटा|

November 27, 2011

कैसा होगा हमारा लोकपाल?

इस  समय पुरी दुनिया की निगाहे भारत के संसद मे चल रहे शीतकालीन सत्र पर लगी है| 
क्युकि इसी के बिल(छेद) से लोकपाल के निकलने की प्रतीक्षा है| वह कैसा होगा? 
मजबूत या दुबला-पतला? मोटा की हलका? जब निकलेगा, तभी से लोकपाल हो जाएगा या नाल कटने के बाद? लोकतंत्र के सरकारी अस्पताल मे उसके बाप और रिश्तेदार बेचैनी से टहल रहे है| 
आती जाती नर्सों से पूछताछ कर रहे है| पता नही लड़के के स्वाभाव का या लड़की के स्वाभाव का होगा? 
बिना हाईकमान के पूछे भ्रूण हत्या भी तो नही करा सकते| 
सतमासी निकेलेगा, तो बचना भी मुश्किलहै| 
सभी रिश्तेदार सोहर गा रहे है| अब आगे क्या होगा बिल से लोकपाल निकले या साप, बिच्छू, अज़गर तमाशा तो होगा ही क्यूकी ये भारत का लोकपाल है, और हमारी सरकार जिधर पाव पसारे है, उधर अन्ना हज़ारे है|

November 22, 2011

कुछ बातें जो समझ से परे.

  • जब कोई व्यक्ति आ ही गया है तो लोग ये क्यू कहते है कि: "आ गये?"
  • बारिश अंदर तो होती नही तो लोग ये क्यू पुछते है कि: "बाहर बारिश हो रही है क्या?"
  • कोई दूसरे की आँखो से नही देखता और ना दूसरे के कानो से सुनता है फिर लोग ये क्यू कहते है कि: "मैने अपनी आँखो से देखा है या मैने अपने कानो से सुना है?"
  • राँग नंबर कभी इंगेज क्यू नही जाता?
  • जब हम जल्दी मे होते है तभी चौराहे पर लाल बत्ती क्यू मिलती है?
  • दवाई या फोन की दुकान पर लिखा होता है कि दुकान 24 घंटे खुली है तो फिर उसके दरवाजो मे ताला लगाने की जगह क्यू बनी होती है?
  • जो नेता अभी तक नेहरू परिवार पर वंशवाद का आरोप लगाते रहते थे वो अपने बेटे बेटियो को राजनीति मे क्यू ला रहे है?
  • बात बात पर अमेरिका, यूरोप की आलोचना करने वाले लोग फोन, टीवी, कार का इस्तेमाल क्यू करते है? जो की पश्चिमी देशो की देन है|

बिसरी यादों के पन्ने..

दिल से कुछ देर उसको जुदा कैसे रखूँ,
मेरे बस मे नही खुद को उससे खफा र
खूँ?
नही है मेरे दिल मे सिवा उसके
मै उसको भुला दू तो याद क्या र
खूँ??
***     ***       ***
तुम पास होते तो कोई शरारत करते,
तुम्हे लेकर बाहों मे मोहब्बत करते,

देखते तेरी आँखो मे नींद का खुमार,
और अपनी खोई हुई नींदो की शिकायत करते

वो मेरी वाफ़ाओं का सिला कुछ इस तरह से देता है...

वो मेरी तमाम वाफ़ाओं का सिला कुछ इस तरह से देता है
बात करके कुछ ऐसी मुझे मेरी नज़रों से गिरा देता है |

ख्याल रखता है वो मेरा कुछ इस तरह से
के ज़ुबान के नश्तर से मुझे मार देता है |

उसकी बात फाँस बन कर अटक जाती है मेरे दिल में
वो कभी कभी बिन मौत मुझे मार देता है |

बनती है फिर मेरी ज़ात ही शिकवे शिकायतों का मेहवार
यूँ लगता है मुझे वो मेरे होने की सज़ा देता है |

ना जाने कैसे सहता है वो मेरे वजूद को
मुझे अपने उपर बोझ क़रार देता |

भूल जाता हूँ मैं बहुत जल्द इन ज़्यादतियों को
वो जब एक बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता है |

इतने पास न जा

किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना
न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही" ...

November 12, 2011

हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले

हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले,
कदम-दर-कदम हौसला कर चले|

उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले

लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले|

वो आये जो महफ़िल में मेरी, मुझे
नजर में सभी की खुदा कर चले

बनाया, सजाया, सँवारा जिन्हें
वही लोग हमको मिटा कर चले|

उन्हें रूठने की है आदत पड़ी
हमारी भी जिद है, मना कर चले

जो कमबख्त होता था अपना कभी
उसी दिल को हम आपका कर चले|

September 02, 2011

अन्ना हजारे को जोक्स से भी समर्थन

अन्ना हजारे को समर्थन देने वालों में ना सिर्फ वो लोग थे जो रामलीला मैदान में बैठे थे बल्कि कुछ ऐसे भी थे जो सोशल मीडिया के माध्यम से इस आंधी को तूफान बना रहे थे. युवाओं ने अन्ना हजारे के आंदोलन को भरपूर समर्थन दिया. 
इंटरनेट पर अन्ना के समर्थन में कई तरह के जोक्स देखने को मिल रहे हैं जिनमें से कुछ निम्न हैं:

तिहाड़ में अन्ना और कलमाड़ी
तिहाड़ में अन्ना और कलमाड़ी डिनर पर मिले.
कलमाड़ी: आप यहां कैसे?
अन्ना: मैं जन लोकपाल बिल के लिए आया हूं…और आप?
कलमाड़ी: मैं तो इलेक्ट्रिसिटी, कैटरिंग, मशीनरी वगैरह सभी बिलों के लिए.
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बिग बॉस में अन्ना
संता: अन्ना को बिग बॉस वाले अपने यहां बुलाने से बच रहे हैं.
बंता: ऐसा क्यों?
संता: अरे एक बार अंदर गए तो तब तक बाहर नहीं आएंगे जब तक उन्हें विनर नहीं बनाया.
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कसाब: मैं भारतीय नहीं हूं, मैं भारत से नफरत करता हूं और मैं भारतीयों को मारता हूं, लेकिन मैं भारतीय जेल में सेफ हूं.
अन्ना: मैं भारतीय हूं, मैं भारत से प्यार करता हूं और भारतीयों को बचाना चाहता हूं, पर मैं क्यों जेल में हूं.
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एक कार्टून में धोनी का कहना है कि जब तक रामलीला मैदान सूख नहीं जाता अन्ना चाहें तो ओवल के मैदान में अनशन कर सकते हैं. इंग्लैंड को हम फिर कभी हरा लेंगे!
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अन्ना हजारे का असर
संता: हे भगवान मैंने बीटेक तो पास कर ली, अब मुझे कोई अच्छी सी नौकरी दिलवा दो, आपके चरणों में 101 रूपए रख रहा हूं.
भगवान: पागल, मरवाएगा क्या, “अन्ना हजारे” देख रहे होंगे तो! पीछे से दे.
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रजनीकांत जोक्स अन्ना हजारे के साथ
जैसे ही पता चला कि रजनीकांत भी अन्ना हजारे के सपोर्ट में आ गए हैं, दुनिया भर में खलबली मच गई कि कहीं दोनों मिलकर स्विस बैंकों को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग न रख दें.
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एक बार कपिल सिब्बल, चिदंबरम और दिग्विजय सिंह एक साथ हेलिकॉप्टर में जा रहे थे।
सिब्बल ने एक 100 रुपये का नोट गिराया और कहा कि मैंने आज एक गरीब भारतीय को खुश कर दिया।
तभी दिग्विजय सिंह ने 100 रुपये के 2 नोट गिराए और कहा, मैंने तो 2 गरीब भारतीयों को खुश कर दिया।
अब चिदंबरम की बारी थी। उन्होंने एक रुपये के 100 सिक्के गिराए और कहा, मैंने 100 गरीब भारतीयों को खुश कर दिया।
उनकी ये बातें सुनकर पायलट हंसा और बोला -  ”अब मैं तुम तीनों को गिराने जा रहा हूँ, 125 करोड़ भारतीयों को खुशी मिलेगी।” 
पायलट अन्ना हजारे थे।
resource: http://jokes.jagranjunction.com & more...

August 10, 2011

15 अगस्त 1947 से 15 अगस्त 2011 तक

15 अगस्त एक ऐसा दिन जिस दिन हम अपने व्यस्त समय से समय निकाल चर्चा करते है अपने देश के बारे मे, उसके विकास के बारे मे, पुराने नेताओ की तारीफ तो नये को गाली, कुछ बुढ्ढजीवी लोग देश की तरक्की की भी बात करते है और ये सब पूरा दिन चलता है| और ऐसा बनारस के छोटे-मोटे कस्बे से लेकर दिल्ली तक चलता है|
मुझे 1947 से पहले का तो पता नही क्युकि पुनर्जन्म की बाते मुझे याद नही रहती पर जो सुना, पढ़ा उसके अनुसार मौजूदा हालत की तुलना करता हूँ तो यक़ीनन सिर गर्व से उँचा हो जाता है| अब हम एक लहुलुहान देश नही है, बल्कि हमारी ताक़त का लोहा दुनिया मानती है, कुछ मूलभूत समस्याए जैसे बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, ग़रीबी आज भी हमारे यहाँ कायम है पर ऐसा संसार के किस देश मे नही है? क्या सबसे ताकतवर अमेरिका मे (जिसने अपनी आज़ादी की 234वी वर्षगाँठ मनाई है) ग़रीबी नही है? क्या वहाँ बेरोज़गार नही बढ़ रहे? क्या ओबामा से पहले कोई अश्वेत या कोई महिला राष्ट्रपति बन पाई? दुनिया का स्वर्ग माना जाने वाला अमेरिका क्या अंदरूनी तौर से डर का शिकार नही? अगर ये सब सच है तो हमे गर्व करना चाहिए की हमने 64 साल मे बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की| हमे ये नही भूलना चाहिए की सफलता बरकरार रखने के लिए नयी नयी चुनौतियो का सामना करना पड़ता है| इस समय पूरी दुनिया मे जबरजस्त परिवर्तन का दौर है ऐसे मे हमे अपनी समस्यायों से जूझने की सामूहिक रणनीति बनाने की ज़रूरत है| मोबाइल पर मैसेज और माइक पर लोकप्रिय भासण की नही|

August 03, 2011

कुछ खास होता है ये Friendship Day

"फ़्रेंडशिप डे" आने वाला है और कई सारे सवाल भी ला रहा है.
वेसे तो विदेशो से बहुत से "डे" भारत आए देखा जाए तो हर दिन कोई न कोई डे होता ही है, 
लेकिन फ्रेंडशिप डे का अपना अलग महत्व है, क्युकि मामला दोस्ती का है और कहा जाता है 
कि इंसान को सारे रिश्‍ते जन्‍म के साथ मिलते है बस दोस्त वो जन्म के बाद बनता है.
ये रिश्ता उसका अपना होता है जिसका मॅनेज्मेंट उसके हाथ है जब चाहे रखे जब चाहे छोड़ दे. 
ना समाज का डर ना परिवार वालो का..
दोस्त हमेशा वो करने मे मदद करते है जो आप करना चाहते है. 
अच्छे दोस्त बुरे दोस्त ये किस्मत से मिलते है,
मैं इस मामले मे खुदा का शुक्रगुज़ार हू की उसने हमेशा मुझे अच्छे दोस्त दिए 
वो दोस्त जिन्होने मेरे उड़ने के लिए आसमान बनाए तो दौड़ने के लिए ज़मीन.
आज भागदौड़ की ज़िन्दगी मे वो दुर तो है पर जुदा नही..

वक़्त के साथ इंसान की जरूरते, ख्वाहिशे बदलती रहती है 
जिन्हे पूरा करने के चक्कर मे वो धीरे धीरे दोस्तो से दूर होने लगता है
ऐसे मे ये दिन हमे उन सुनहरे दिनो को याद करने के लिए मजबूर करता है 
जो ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन पल थे 
जिसे याद करके हम फिर एक नयी ताज़गी का अनुभव करते है..
तो क्युना एक दिन हम उन दिनो को याद करे 
जब हम चाय के पैसे देने के लिए एक दुसरे की जेबे देखा करते थे
वो चाय आज किसी बड़े रेस्तरा की चाय से ज़्यादा जयकेदार थी,
सिगरा पर बैठे बैठे पूरा दिन गुज़ार देते थे गप्पे लड़ाते लड़ाते,
आज भले फोन पर बात करने की फ़ुर्सत न मिले.
काम एक का रहता जाते दस थे, आज भले अपना काम करने की फ़ुर्सत न हो..
कैंट से गोदौलिया एक समोसे पर पैदल चले जाते थे फिर भी ना थकते थे 
आज ऑफीस से घर आने मे थक जाते है..
कालेज जाना तो बहाना था हमे तो रिलेशनशिप पता लगाना था..
मेस का खाना लाख बुरा हो पर सबसे पहले ख़ाते थे फिर गरियाते थे.
"दोस्तो पहले वक़्त था और कुछ नही आज सबकुछ है पर वक़्त नही.."

June 30, 2011

बरसात के मौसम में प्यार

लगता है इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में प्यार जैसी नाजुक भावना को महसूस करने और व्यक्त करने के लिए आपके पास समय ही कहां है?
पर, जिनके लिए आपके दिल में बेइंतहा प्यार है, जिनकी आपको परवाह है, उन्हें इसी भागमभाग में उस प्यार का अहसास कराना भी जरूरी है वरना दूसरा साथी जो अपेक्षाकृत कम व्यस्त है इसका गलत अर्थ निकालेगा। वह इस दूरी को उपेक्षा का नाम देगा और इस आधार पर रिश्ते में दरार आ सकती है। 
बरसात के मौसम में प्यार का मजा ही अलग है। बारिश को प्यार के लिए सबसे आदर्श मौसम माना गया है। पुराने साहित्य में सावन और बारिश में मिलन के किस्से बड़ी खूबी से पेश किए गए हैं। फिल्मों में भी बरसात के मौसम में रोमांस के दृश्य बड़ी दिलचस्पी से फिल्माए जाते हैं।
तो क्यु ना
सुंदर सी छतरी में साथ-साथ, आधे-आधे भीगें। और इस बहकते मौसम में बारिश के सारे फिल्मी गाने गुनगुनाते हुए बारिश के दिनों को दिलकश बनाया जाए..

June 04, 2011

मैं सोचता रहता हूं...

काश, आज हमारा ऑफिस गांव में होता...नाश्ता करके घर से निकलते और खरामा- खरामा टहलते हुए ऑफिस पहुंच जाते जो कि घर से दस कदम की दूरी पर होता। रास्ते में साइकिल से शहर जाते स्कूल के गुरु जी से दुआ- सलाम भी कर लेते। ऑफिस जाकर कुर्सी- टेबल बाहर निकालते और नीम पेड़ के नीचे, गुनगुनी धूप में काम करने बैठ जाते। पास की गुमटी से चूल्हे में लकड़ी जला कर बनाई अदरकवाली चाय भी आ जाती। चाय आती तो साथी भी आ जाते, अखबार भी ले आते। फिर अखबार में छपी दुनिया भर की खबरों पर चर्चा की जाती, सुबह सुने समाचार को “ब्रेकिंग न्यूज” की तरह पेश किया जाता और दिल्ली के लोगों की हंसी उड़ाई जाती कि बेचारे बिना पेट्रोल के ऑफिस नहीं जा पा रहे हैं।  काश.....

June 03, 2011

Friends Never Change....


ज़रा गौर फरमाइए...
Result अगर अच्छा हो तो:
Teacher- Hoshiyar bachcha hai
Maa-Bhagwan ki kripa hai
Papa-Beta kiska hai

DOST- Chal daaru pite hain
Result अगर खराब हो तो:
Teacher-Padhai mein dhyan hi nahi
Maa-Aag lage is mobile mein
Papa-Laad pyar ne bigaad diya

Dost-Chal daaru pite hain
जनमदिन पर:
Maa-Jug jug jiye mera beta
Papa-Hamesha age bade
 
DOST-Chal daaru pite hain
प्यार में धोखा खाने पर:
Maa-Beta bhul ja usko
Papa-Mard ban

DOST- Chhod Yaar chal daaru pite hain
Moral: Duniya badal jati hai par DOST kabhi nahi badalte..

May 14, 2011

विदेशी विद्वान और हिंदी साहित्य..!!!

हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी भारत में भले ही उपेक्षित हो, लेकिन इस जबान का जादू पूरी दुनिया के लगभग हर भाषा के विद्वानों और साहित्यकारों के सिर चढ कर बोलता है।

हिंदी साहित्य के प्रेम में बंधे विदेशी विद्वानों ने इस भाषा की रचनाओं पर अपनी कलम खूब चलाई है।
भारत के नागरिकों से संबंध स्थापित करने के लिए भाषाई और धर्म प्रचार के उद्देश्य ने पहले तो विदेशियों को इस देश के साहित्य का अध्ययन करने के लिए मजबूर किया और फिर अध्ययन से उपजी आत्मीयता और हिंदी साहित्य की समृद्धि ने उन्हें कलम चलाने को मजबूर किया।

इतालवी विद्वान एलपी टस्सी टरी ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने तुलसीदास की श्रीराम चरित मानस पर सबसे पहले शोध करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी। रूसी विद्वान एपी वारान्निकोव ने वर्ष 1948 में श्रीरामचरित मानस का रूसी भाषा में अनुवाद किया जो बहुत लोकप्रिय हुआ। वारान्निकोव ने मुंशी प्रेमचन्द की रचना [सौत] का भी यूक्रेनी भाषा में अनुवाद किया। उनकी मृत्यु के बाद उनकी समाधि स्थल पर रामचरित मानस की पंक्ति [भलोभला इहि पैलहइ] अंकित की गई है।

हिंदी साहित्य का इतिहास भी विदेशी साहित्यकारों के लिए शोध का विषय रहा है।
फ्रांस के विद्वान गार्सा दत्तासी ने सबसे पहले हिंदी साहित्य का इतिहास लिखा था। उनकी फ्रेंच भाषा में लिखी गई पुस्तक इस्त्वार वल लिते रत्थूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी [हिन्दुई और हिन्दुस्तानी साहित्य का इतिहास] है। इसका प्रथम संस्करण ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को 15 अप्रैल 1839 को समर्पित किया गया था जिसमें हिंदी और उर्दू के 738 साहित्यकारों की रचनाओं एवं जीवनियों का उल्लेख है।

बेल्जियम के विद्वान फादर कामिल बुल्के यहां आए तो ईसाई धर्म का प्रचार -प्रसार करने के लिए थे, लेकिन हिंदी साहित्य ने उन्हें इस कदर अपना दीवाना बनाया कि वह भारत में ही बस गए और दिल्ली में अंतिम सांस ली। उन्होंने [रामकथा, उत्पत्ति और विकास] पुस्तक को चार भागों और इक्कीस अध्यायों में लिखा।

April 18, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण.

1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.


3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.


4.
अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5.
हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.


6.
नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.


7.
भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


8.
सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो ऍ

April 04, 2011

एक मन्नत जो पूरी हो गई।



एक अरब 21 करोड़ भारतीयों ने विश्व कप विजय की मन्नत मांगी थी, जो पूरी हो गई। धौनी ने जीत का छक्का क्या लगाया एक अरब 21 करोड़ भारतीयों का अरमान पूरा हो गया।
आप महसूस कर सकते हैं कि क्रिकेट के दीवाने किस तरह मैच से पहले कई तरह के विश्लेषण में मशगूल हो जाते हैं। सभी तरह के कयास, उपाय, सुझाव और न जाने क्या क्या, हर कोई हर तरह की चर्चा करता है, आप कहीं भी यह सब सुन सकते हैं।  भारत ने आज से 28 साल पहले विश्व खिताब पर कब्जा जमाया था। विश्व कप जीतना अपने आप में अद्भुत होता है। 1983 में जब हमारी टीम ने कप जीता था, तब देश में टीवी कम हुआ करते थे, जिससे अधिकांश लोगों को इस अद्भुत नजारे और इसके रोमांच का एहसास नहीं हो पाया होगा। 
आखिर 21 साल से देश को विश्व कप दिलाने का सपना देखने वाली तेंदुलकर की आंखों ने अपना सपना पूरा होते देख लिया।

 

April 01, 2011

भारतीय टीम की हार का कोई विकल्प ही नहीं

जब भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्र्वाटर फाइनल मैच होना था तो उसे मिनी-फाइनल कहा गया और अब भारत-पाकिस्तान सेमीफाइनल मैच को महा-मुकाबला और फाइनल से भी बड़ा फाइनल कहा जा रहा है। इस मैच को लेकर इतना अधिक माहौल बना दिया गया है कि शनिवार को होने वाला फाइनल मैच और अन्य क्रिकेट गतिविधियां अब द्वितीयक बातें प्रतीत हो रही हैं। परिदृश्य कुछ ऐसा है कि यहां भारतीय टीम की हार का कोई विकल्प ही नहीं बचता।

टीम के बल्लेबाजों ने लय हासिल कर ली है। युवराज सिंह ऑलराउंड प्रदर्शन कर रहे हैं। बहरहाल, टीम चाहे कितना भी बढि़या प्रदर्शन करे, यह संभव नहीं है कि उसके 11 के 11 खिलाड़ी हर मैच में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें, लेकिन भारत जैसे देश में कोई यह मानने को तैयार नहीं होता।


तो ट्रेलर में देखा गया सस्पेंस अब धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच कर खत्म होने की तरफ बढ़ रहा है। यहां अब बेहतर नहीं बल्कि बेहतरीन करने का वक्त आ गया है। जो टीम ऐसा कर गई वो इस सस्पेंस को खत्म करने में कामयाब हो जाएगी। तो अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर इस तिलिस्म को भेद कर कौन सी टीम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनने का गौरव हासिल करेगी। 

March 17, 2011

भारत का राष्ट्रीय गान

भारत, जन गण--मन के राष्ट्रीय गान महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गया था और 24 जनवरी 1950 को भारत की संविधान सभा ने अपनाया. जन गण--मन पहले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में था 27 दिसम्बर 1911 को गाया. गाने, जन गण--मन, पाँच पद होते हैं. प्रथम छंद राष्ट्रीय गान का गठन किया. राष्ट्र गान का पूर्ण संस्करण का खेल समय लगभग 52 सेकंड है. भारत का राष्ट्रीय गान इस प्रकार है,
उन्होंने कहा:-


"Jana-gana-mana-adhinaayaka, jaya he
Bhaarata-bhagya-vidhaataa
Punjab-Sindhu-Gujarata-Marathaa
Draavida-Utkala -Banga Vindhya-Himachala-Yamuna-Gangaa
Uchchala-Jaladhi-taranga
Tava shubha naame jaage
Tava shubha ashisha maange
Gaaye tab jaya gaatha
Jana-gana-mangala-daayaka jaya he
Bharata-bhagya-vidhataa
Jaya he, jaya he, jaya he
Jaya jaya, jaya, jaya he!! "
 


यहां टैगोर के छंद भारतीय राष्ट्रीय गान का अंग्रेजी प्रतिपादन है :-


"Thou art the ruler of the minds of all people, of India's destiny. Thy name rouses the hearts of Punjab, Sindh, Gujarat and Maratha, of the Dravida and Orissa and Bengal it echoes in the hills of the Vindhyas and Himalayas, Mingles in the music of Jamuna and Ganges and is chanted by the waves of the Indian Sea. They pray for thy blessings and sing thy praise. The saving of all people waits in thy hand, thou dispenser of India's destiny victory, victory, victory, victory to thee."
 

March 07, 2011

मै नही हू तो कुछ नही

मै घर की रंगीन चारदीवारी मॆं
क़ैद सी एक औरत, या सजा हुआ कोई फानूस
मै अपने घर की रौनक हू
या शायद घर वालो का गुरूर

मै घर को बनने वाली एक कड़ी या
दिवारू पर लगी हुई एक पैंटिंग
अनेको चटकीले रंगो से सजी
ओर हरियाली से खूबसूरत रंगो मै सनी ,

मै क्या हू? मुझसे ना पूछ ए मेरे खुदा,
आज तक खुद को समझ ना पायी,
मै नही हू तो कुछ नही ह,
मै हू तो घर मै रोनक ह!

पर मेरे चेहरे पर क्यों रौनक नही ह
मै क्यों एक मूरत सी कोने मै पडी हुई
मै क्यों एक बुत सी कमरे मै सजी हुई
मै क्यों चुप सी खामोश पड़ी हुई!

जब तुम जान जाओ मै क्या हू,
मुझे भी बता देना, जब मेरे हँसने पर,
तुम कोई पाबन्दी ना लगाओ तो हँसा देना,
ओर जब लगे इस मूरत की जरूरत नही तो बाहर फीकवा देना

February 28, 2011

खूबसूरती क्या है?

कल मैने खुदा से पूछा कि खूबसूरती क्या है?
तो वो बोले


खूबसूरत है वो लब जिन पर दूसरों के लिए एक दुआ है

खूबसूरत है वो मुस्कान जो दूसरों की खुशी देख कर खिल जाए

खूबसूरत है वो दिल जो किसी के दुख मे शामिल हो जाए और किसी के प्यार के रंग मे रंग जाए

खूबसूरत है वो जज़बात जो दूसरो की भावनाओं को समझे

खूबसूरत है वो एहसास जिस मे प्यार की मिठास हो

खूबसूरत है वो बातें जिनमे शामिल हों दोस्ती और प्यार की किस्से कहानियाँ

खूबसूरत है वो आँखे जिनमे कितने खूबसूरत ख्वाब समा जाएँ

खूबसूरत है वो आसूँ जो किसी के ग़म मे बह जाएँ

खूबसूरत है वो हाथ जो किसी के लिए मुश्किल के वक्त सहारा बन जाए

खूबसूरत है वो कदम जो अमन और शान्ति का रास्ता तय कर जाएँ

खूबसूरत है वो सोच जिस मे पूरी दुनिया की भलाई का ख्याल 

February 24, 2011

बिहार स्पेशल शब्दकोष।

 पेश है शब्दकोश के कुछ जाने-पहचाने शब्द


" कपड़ा फींच\खींच लो, बरतन मईंस लो, ललुआ, ख़चड़ा, खच्चड़, ऐहो, सूना न, ले लोट्टा, ढ़हलेल, सोटा, धुत्त मड़दे, ए गो, दू गो, तीन गो, भकलोल, बकलाहा, का रे, टीशन (स्टेशन), चमेटा (थप्पड़), ससपेन (स्सपेंस), हम तो अकबका (चौंक) गए, जोन है सोन, जे हे से कि, कहाँ गए थे आज शमावा (शाम) को?, गैया को हाँक दो, का भैया का हाल चाल बा, बत्तिया बुता (बुझा) दे, सक-पका गए, और एक ठो रोटी दो, कपाड़ (सिर), तेंदुलकरवा गर्दा मचा दिया, धुर् महराज, अरे बाप रे बाप, हौओ देखा (वो भी देखो), ऐने आवा हो (इधर आओ), टरका दो (टालमटोल), का हो मरदे, लैकियन (लड़कियाँ), लंपट, लटकले तो गेले बेटा (ट्रक के पीछे), की होलो रे (क्या हुआ रे), चट्टी (चप्पल), काजक (कागज़), रेसका (रिक्सा), ए गजोधर, बुझला बबुआ (समझे बाबू), कॅबारो(उखाड़ना), कीन लो(खरीद लो), सुनत बाड़े रे...

February 23, 2011

तो रोना मत, हँस देना..

बरसों बाद.. जब तुम्हारी नज़र पड़ेगी

और उस पुरानी तस्वीर पर जा रुकेगी

जिसमें हम सब यार हँस रहे हैं

एक केक के टुकड़े के लिए लड़ रहे हैं

तब इन दिनों को फिर से जीना नहीं चाहोगे भला ?

जब धूल भरी कोई फटेहाल कॉपी मिलेगी

जिसमें होगा वो tic-tac-toe का अधूरा गेम

जिसे खेलते हुए हमें class से बाहर निकाला गया था

याद कर.. तुम हँस पाओगे क्या ?

उसी कॉपी में रखा हुआ वो सूखा गुलाब

अधूरे प्यार की याद दिला जाए शायद

दोस्तों ने खूब मज़ाक उड़ाया था
ना

हँसते हँसते तुम टाल गए थे अपने दिल की बात

अब मीठी सी याद के सिवा कुछ बचा है क्या?

जब झगड़े में कसम खा लेते टांगे तोड़ने की :)


एक सॉरी, कोल्ड ड्रिंक और समोसे के बाद

ऐसे झगड़ा भूलते जैसे कुछ हुआ ही ना
हो

आज दुनिया कि formality में वो अपनापन कहीं पाओगे भला
  ?

Test में cheating करने पर जब साथ में पकड़े गए थे

और जब तुझे 0 और मुझे 1 मिला था

"कमीने दे दिया
ना धोखा.." तुमने कहा था

वैसा प्यार भरा धोखा अब कहीं खाओगे क्या
?

"अब चाय कौन पिलाएगा?" इस सवाल पर झगड़ते थे

चिल्लर जोड़ते, शर्तों में उलझे रहते थे और ध्यान...

चाय से ज़्यादा पीने वाली पे रखते थे

चिल्लर की मिठास अब किसी चाय में पाओगे
क्या ?

जब maggi खाते, गप्पें मारते निकल जाती थी रातें


जब birthday पर wishes कम, खायी थी ज़्यादा लातें

जब जाते जाते भर आई थी सबकी आँखें

जब ऐसे यार छूटे..और ना
जाने कितने सपने टूटे..

जब हमने decide किया था कि contact में रहेंगे

जब किसी ने 'keep-in-touch' को 'keep-touching' कहा था :')

याद है ना
?

बरसों बाद.. आज पता नहीं सारे वादे..

सारे contacts खो से गए हैं

दुनिया की रफ़्तार में फसे

भूल भुलैया में गुम गए हैं

कौन कहाँ है.. पता ही नहीं कुछ

बस इतनी उम्मीद है कि

कभी इस ओर मुड़ कर देखो

तो रोना मत, हँस देना..

बरसों बाद.. जब नज़र पड़े तुम्हारी


तो रोना मत, हँस देना..

इतनी सी है कसम

बस इतना ही मांग रही यारी..

February 21, 2011

माँ


हिमालय से ऊची है 'माँ'  किंतु पाषांड सी कठोर नही
सागर सी गहरी हैं 'माँ'  किंतु सागर सी खारी नही,
वायु सी गतिशील है 'माँ' किंतु वायु सी अदृश्य नही
परमेश्वर की जननी है 'माँ' किंतु परमेश्वर सी दुर्लभ नही,
माँ की कोई उपमा नही, क्यूकी माँ "उप - माँ" नही हो सकती.

February 17, 2011

दो महान लेखक प्रेमचंद और जार्ज आरवल

साहित्य के इतिहास में अनेक विसंगतियां घटित होती रहती हैं, कभी-कभी कुछ श्रेष्ठ कृतियां समुचित प्रकाश-प्रसार में नहीं आ पातीं और कुछ कृतियां जग-व्यापी होकर लोकप्रियता के शिखर छू लेती हैं। प्रेमचंद की दो बैलों की कथा 1931 में प्रकाशित हुई और जार्ज ऑरवेल का लघु उपन्यास एनीमल फार्म 1945 में। वस्तुत: दोनों ही रचनाकार साम्राज्यवादी, तानाशाही ताकतों का पुरजोर विरोध पशुओं के बाडे की दुनिया के माध्यम से कर रहे हैं- दो बैलों की कथा भी कथ्य और शैल्पिक स्तर पर एनीमल फार्म से किसी प्रकार भी कमतर नहीं, दोनों में कई-कई समानताएं हैं किंतु प्रेमचंद का दुर्भाग्य यह रहा कि उनकी कहानी का अनुवाद अंग्रेजी में नहीं हुआ और यह कहानी सारे संसार के अक्षर जगत में नहीं पहुंच सकी, यद्यपि उनका यह अद्भुत कथा-प्रयोग जॉर्ज ऑरवेल से 13-14 वर्ष पूर्व हो चुका था। वैश्विक स्तर पर दो बैलों की कथा की बात छोडिए, हिंदी समीक्षा ने भी इस कहानी को कोई खास अहमियत न दी। जॉर्ज ऑरवेल के उपन्यास एनीमल फॉर्म का पुनर्पाठ मेरा ध्यान बरबस प्रेमचंद की इस कहानी की ओर मोडता रहा- दोनों में अद्भुत समानता, यहां तक कि अपनी शैल्पिक सतर्कता- कहानी के रूपकत्व के बंधान में दो बैलों की कथा कितने ही स्थलों पर एनीमल फॉर्म से आगे दिखाई देती है।
एनीमल फॉर्म- 1944 ई. में लिखा गया प्रकाशन 1945 में इंग्लैंड में हुआ जिसे तब नॉवेला (लघु उपन्यास) कहा गया, यद्यपि इसकी मूल संरचना एक लंबी कहानी की है। कथाकार ने इसे प्रथम प्रकाशन के समय शीर्षक के साथ एक फेयरी टेल- (द्र. प्रथम संस्मरण का मुख पृष्ठ) एक पर कथा कहा, क्योंकि परी कथाओं के समान ही विभिन्न जानवर-जन्तु यहां उपस्थित हैं। प्रकाशन के साथ ही विश्व की सभी भाषाओं में इसके अनुवाद प्रकाशित हुए- फ्रांसीसी भाषा में तो कई-कई!! प्रसिद्ध टाइम मैगजीन ने वर्ष 2005 में एक सर्वेक्षण में 1923-2005 ई. की कालावधि में प्रकाशित 100 सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासों में इसे परिगणित किया और साथ ही 20 वीं शती की माडर्न लाइब्रेरी लिस्ट ऑफ बेस्ट 100 नॉवल्स में इसे 31 वां स्थान दिया।
एनीमल फॉर्म उपन्यास साम्यवादी क्रांति आन्दोलन के इतिहास में आई भ्रष्टता को नंगा करता हुआ दर्शाता है कि ऐसे आंदोलन के नेतृत्व में प्रवेश कर गयी स्वार्थपरता, लोभ-मोह तथा बहुत-सी अच्छी बातों से किनाराकशी किस प्रकार आदर्शो के स्वप्न-राज्य (यूटोपिया) को खंडित कर सारे सपनों को बिखेर देती है। मुक्ति आंदोलन जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया गया था, सर्वहारा वर्ग को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए, उस उद्देश्य से भटक कर वह बहुत त्रासदायी बन जाता है। एनिमल फॉर्म का गणतंत्र इन्हीं सरोकारों पर अपनी व्यवस्था को केंद्रित करते हैं। पशुओं के बाडे का पशुवाद (एनीमलिज्म) वस्तुत: सोवियत रूस के 1910 से 1940 की स्थितियों का फंतासीपरक रूपात्मक प्रतीकीकरण है।
प्रेमचंद दो बैलों की कथा का विन्यास लगभग इसी रूप में फंतासी और रूपकत्व-शैली में होता है। प्रेमचंद की कहानी में कलात्मकता इसलिए अधिक आयी है कि उसके पशु जगत के प्राणी-जन्तु-बहुत अधिक मुखर (वोकल) रूप में अपनी बात नहीं कहते, अपितु वहां बहुत सूक्ष्म संकेतों, व्यंग्य और फंतासी में ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति को उखाड फेंकने की बात व्यंजित होती है वर्णित, कथित नहीं। बैल और गधों के स्वभाव की मीमांसा दोनों कलाकार करते हैं। प्रेमचंद के रचना-मानस में पराधीन भारत का जमींदारों के शोषण में पिसता सामान्य आदमी और गरीब किसान है, उसी की बात वे गधे के माध्यम से करते हैं। उसके सीधेपन का वर्णन करते हुए प्रेमचंद के मानस में देशवासी ही बसे हुए हैं जो मेले-ठेलों, तीज-त्योहारों में (बैशाख में) कभी-कभी कुलेले कर लेते हैं पर जो एक स्थायी विषाद भारतीय कृषक और मजदूर के चेहरे पर छाया रहता है। निश्चय ही उनका मंतव्य यहां पशु जगत की कथा कहना नहीं है, रुपकत्व के कुशल बंधान से वे देश में साम्राज्यवादी शक्तियों के अत्याचारों-अनाचारों की पोल खोल, देशवासियों को परतंत्रता की बेडियां काटने के लिए उत्प्रेरित कर रहे हैं। जापान इसीलिए उदाहरणस्वरूप उनकी दृष्टि में आता है। प्रेमचंद के इस गधे के वर्णन के बाद ऑरवेल द्वारा अपने उपन्यास के बेंजामिन नामक गधे का यह वर्णन भी द्रष्टव्य है, बूढे बेंजामिन में विद्रोह के बाद भी कोई बदलाव नहीं आया था, वह अब भी उसी तरह सुस्ती से काम करता था, जैसे जोंस के समय करता था। वह काम से कभी नहीं जी चुराता था, लेकिन स्वेच्छा से कभी अतिरिक्त काम नहीं करता था। विद्रोह और उसके परिणामों पर वह कोई राय व्यक्त नहीं करता था। यह पूछे जाने पर कि क्या वह जोंस के जाने पर खुश नहीं है, तो कहता गधे लम्बा जीवन जीते हैं। तुम लोगों में से किसी ने कभी मरे हुए गधे को नहीं देखा होगा।
मोती और हीरा जब अपने सम्मिलित पुरजोर धक्कों से कांजीहाउस की दीवार गिरा देते हैं तो सब पशु-घोडियां, बकरियां, भैंसे, आदि भाग निकले पर गधे अभी तक ज्यों-के-त्यों खडे थे। प्रेमचंद के इस छोटे-से वाक्य के निहितार्थ व्यंजना क्या है? कहना चाहते हैं कि देश में ऐसे गधों की कमी नहीं थी जो सारी विद्रोहपूर्ण हलचलों से पूरी तरह उपराम बने हुए थे। एनीमल फॉर्म के गधे की भी कमोबेश यही स्थिति है। अपने साथी जानवरों को मार से बचाने के लिए, उनकी जान बचाने के लिए हीरा-मोती मार खाते हैं, उनके तोष का बिंदु यही है कि उनके प्रयत्नों से नौ-दस प्राणियों की जान बच गयी। वे सब तो आशीर्वाद देंगे। भारतेंदु से लेकर प्रेमचंद तक सभी ने भारत-दुर्दशा के लिए भारत-भाग्य को दोषी माना है, प्रेमचंद भी मोती और हीरा के माध्यम से इसी भाग्यवादी दृष्टिकोण को प्रकट कर रहे हैं। जब देश की सामान्य जनता परतंत्रता के जुए के नीचे त्राहि-त्राहि कर रही थी, उस समय भी कुछ लोग धन और ऐश्वर्य का भोग कर मस्ती से पागुर कर रहे थे, हरे हार में चलते इन लोगों की ओर कहानी में बैलों के माध्यम से ही ध्यान खींचा गया है, राह में गाय-बैलों का एक रेवड हरे-हरे हार में चरता नजर आया सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था, कितना सुखी जीवन था इनका; पर कितने स्वार्थी हैं सब! किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई बधिक के हाथ पडे कैसे दुखी हैं।
कसाई के हाथों से मुक्त हो कर झूरी के पास पहुंचते हैं और अपनी दुर्दशा पर विचार करते हुए कहते हैं, हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।.. इसीलिए कि हम इतने नीचे हैं। इस प्रकार प्रेमचंद इस कांजीहाउस और दो बैलों की अन्योक्तिपरक रूपकात्मक फंतासी के माध्यम से बहुत गहरी संवेदना और कलात्मकता के साथ परतंत्र भारत में अंग्रेजों के खिलाफ उभर रहे विद्रोह को अपने रूप में वाणी दे दो बैलों की कथा जैसी बेजोड कहानी लिखते हैं। इस कहानी पर फिल्म भी बनी, गो उसका हस्त्र वही हुआ जो साहित्यिक कृतियों पर बनी अन्य बहुत-सी फिल्मों का हुआ है, उधर एनीमल फॉर्म पर भी कई-कई फिल्में बनीं और चर्चित हुई। ये दोनों ही क्लासिक्स विश्व साहित्य के दो महान कलाकारों की साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ प्रबल प्रतिरोध दर्ज करती हैं।
 



source: http://in.jagran.yahoo.com

February 14, 2011

Happy Love Day


"फूल बनकर मुस्कुराना ज़िंदगी है,
मुस्कुराके गम भुलाना ज़िंदगी है,
जीत कर कोई खुश हो तो क्या हुआ,
हार कर खुशिया मनाना भी ज़िंदगी है…"


February 07, 2011

Working Hours, Leave policies and Holidays in indian Companies

Working hours, Leave policies and Holidays are generally regulated by the nature of business, project deadlines, HR Policy and place where the company cater services.
These statutes categorises the leaves and Holidays as follows:

National Holidays: national holidays are declared compulsorily and the companies do not have flexibility in timing them.

Festival Holidays: companies have the flexibility to choose from a list of about 50 festivals available in the Schedule to The Karnataka Industrial, Establishments (National and Festival Holidays) Act, 1963. Five festival holidays in each calendar year have to be declared in addition to the National Holidays.

General Elections: In case of general elections to the Lok Sabha and Vidhana Sabha and in case of any by election, a holiday needs to be declared to all employees on polling day.
Weekly Holidays: An establismet/company required to remain closed for atleast one day of the week.
Information Technology Establishments; Information Technology enabling services or establishments; & Bio-Technology and Research Centres in addition to certain other establishments are exempt from the provisions of Weekly Holidays.


Working hours: According to sec.54 of Factorise Act, 1948 an adult worker is not required to work more than 9 hour and sec.51 prohibits working for more than 48 hours a week.
Working during night: Sec.66 Factories Act,1948, prohibits working women from 7PM to 6 AM. However the State Government may, by notification exempt any establishment subject to the condition that the establishment provides facilities of transportation and security to such women employees.
Sec.25 of the The Karnataka Shops & Commercial Establishments Act, 1961, prohibits working of women during night in shops and firms. However an IT/ITES/BPO companies can seek exemption under the provision


Leave Eligibility:
  • All regular, full- time employees at Fair Isaac are eligible for Earned Leave.
  • Earned Leave is calculated on a month on month basis for the calendar year (January –
    December)
  • If you have joined during the middle of the year, your earned leave will be pro-rated from
    the date you start employment through December 31 of that calendar year.
    Entitlement
Types of Leave:

1. Earned Leave (EL)
2. Casual Leave (CL)
3. Sick Leave (SL)
4. Maternity Leave (ML)
5. Paternity Leave (PL)
6. Personal Leave of Absence
7. Breavement Leave
8. Paid Holidays (Public Holidays)

Earned Leave (EL):
  • Every month Earned Leave accrues at 13.33 hours per month (equivalent to 1.66 days per month or 160 hours of vacation per calendar year). 

  • During the probation period of 3 months , you are not entitled to take Earned Leave You may avail your Earned leaves only after completing your probation period, at which point you will have accrued 40 (13.33 hours X 3) hours or 5 days.

  • If you are a Management Trainee, your probation period is 1 year. However you may avail your Earned leaves after completing 3 months of service with the organization, at which point you will have accrued 40 (13.33 hours X 3) hours or 5 days.

  • Earned Leave is exclusive of official and weekly holidays. Hence if an employee takes leave during which time a declared holiday or weekend occurs, then those particular date(s) will not be counted as your Earned Leave.
  • Earned leave can be clubbed with Casual Leave. 

  • Balance earned leaves cannot be adjusted against the notice period during termination of services.
Casual Leave (CL):
  • As per the rules under The Shops and Establishment Act, you are entitled to 6 days of Casual Leave to attend to personal matters and not for vacation. 

  • Casual Leave shall be credited to the employees account at the beginning of the calendar year. New employees are eligible to use Casual Leave immediately upon hire.

  • Casual leave cannot be clubbed more than 3 at a time. 

  • Casual Leave can be clubbed with Earned Leave. 

  • There is no accumulation or carry forward of Casual Leave.
    Encashment 

  • Casual leave cannot be encashed or adjusted against notice pay at the time of separation.
Process
  • An employee can request for Casual Leave to attend to personal matters. These would be granted at the discretion of the Supervisor.
  • The employee is required to apply for Casual Leave in advance, unless in case of exigencies where he/she shall submit the leave approval request to the Supervisor within 48 hours of resuming duty.

  • Casual leave must be recorded accurately in the time sheet as “Time off with pay”.
Sick Leave (SL):
  • An employee is entitled to 7 days of Sick Leave which shall be credited to the employees account at the beginning of the calendar year. New employees are eligible to use Sick Leave immediately upon hire.

  • If you have joined in the middle of the year, your Sick leave entitlement will not be pro-rated. The entire Sick Leave of 7 days is granted upon hire. 

  • Sick Leave cannot be clubbed with Earned Leave or Casual Leave. 

  • Sick leave is inclusive of weekly holidays. 

  • There is no accumulation or carry forward of Sick Leave. 

  • Sick leave cannot be encashed or adjusted against notice pay at the time of separation.
Process:
  • Sick leave is to be taken in cases of injury / illness to the employee. An employee must intimate his/her manager either over the phone or on returning from leave.
  • 2 or more days of Sick Leave will require a medical certificate from a qualified and registered medical practitioner .Notwithstanding such certificate, the company can in its sole discretion ask the employee to present himself / herself before the company appointed doctor for medical examination and in such situation the employee shall be eligible for paid sick leave only upon the company appointed doctor certifying the same.
  • Exceptional cases of injury / illness of a serious nature will be viewed on a case to case basis. These however need to be communicated in writing, for getting the necessary approval from the Supervisor. Clubbing of sick leaves with the other leaves in such cases will be at the discretion of the Manager in consultation with HR.
  • Sick leave must be recorded accurately in the time sheet as “Sick”

Maternity Leave (ML) :
 Eligibility
  • Maternity leave is a statutory leave .All women employees will be entitled to maternity benefits as per the provisions of the Maternity Benefit Act, 1961 and the prevailing State rules. 

  • Married and expecting women employees are eligible to avail maternity leave.
  • Women employees who have completed a minimum of 80 days of continuous service with the company are eligible for maternity leave.
  • If you are on probation, you are entitled to avail maternity leave, provided the above condition is fulfilled.
    Entitlement:
  • Maternity leave is restricted to two live births during the service with the company
  • Women employees who have worked for a minimum period of 80 days in the twelve
  • months prior to the delivery shall be entitled to Maternity Leave of up to
    - 12 weeks in case of delivery
    - 6 weeks in case of miscarriage, from the date of miscarriage
  • Under the Act, women employees are eligible for a maximum period of 12 weeks as Maternity Leave and this leave shall not be extended beyond a period of 1 month, without a certificate from a Qualified Medical Practitioner and approval of the HR Personnel.

  • All leave/s beyond the statutory limit of 12 weeks will be charged to Earned Leave. 

  • Maternity Leave may be clubbed with Sick Leave.
Process :
  • The employee should give at least one month's notice prior to the date of commencement of leave.
  • Maternity leave must be recorded accurately in the Oracle time sheet as “Leave of Absence”
  • If you are proceeding on leave beyond the stipulated time, you need to get special approval.
Paternity Leave(PL):
  • Paternity Leave is designed to help the male employee take time off from work during the prenatal/ postnatal stage of his child.

  • All permanent male employees shall be entitled to Paternity Leave up to 7 working days. 

  • No credit/accumulation/encasement of this leave is permissible.

  • The male employee shall submit the application at least one month in advance, along with a certificate from the doctor specifying the expected date of delivery, to his Supervisor with a copy to the HR Department.

  • Paternity Leave must be accurately recorded in the Oracle Time sheet as “Leave of Absence”
Personal Leave of Absence:
  • A personal leave of absence is an unpaid, Fair Isaac-authorized period of absence from the job for up to six months. 

  • Fair Isaac may allow a personal leave of absence for unique or extraordinary reasons that do not fit within the other types of leave offered. 

  • After one year of continuous employment, all Fair Isaac full-time employees are eligible to file a request for a personal leave of absence. Any employee requesting a personal leave of absence must file a written request with his or her Supervisor.

  • A personal leave of absence is granted at the sole discretion of the organization and Fair Isaac reserves the right to refuse requests for personal leave. The decision to grant a personal leave will be based on the business needs of Fair Isaac, the person's tenure with Fair Isaac, the person's recent performance/contributions, and the reason for the requested leave.

  • A leave of absence willNOT be granted to allow an employee time off to start his/her own business, seek employment elsewhere, or to work for another employer (a possible exception is for part-time, voluntary, honorary work for an entity/body organized as a non-profit).
  • For more information about the process for requesting a leave of absence and the effects of the leave on your benefits and options, please speak to the HR team at Fair Isaac (India).
Bereavement Leave :

It is Fair Isaac’s policy to grant paid time off from work to employees for the death of a relative. Employees are eligible for up to 7 days leave, if necessary, in the event of the death of an immediate family member (defined as parents, grandparents, siblings, spouse, children and in-laws). Fair Isaac requests that you notify your Supervisor/ HR team, as early as possible, of an intention to take bereavement leave.