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July 09, 2023

धागा खुल चूका है - थ्रेड्स ऐप का रिव्यु

एक पुरानी कहावत है दो बिल्लिओ की लड़ाई में रोटी के मजे बन्दर लेता है ऐसा ही कुछ आजकल देखने को मिल रहा है इंटरनेट की दुनिया में आये दिन एक नया ऐप कोई कोई लांच कर रहा है और पब्लिक मजे ले रही है| 

इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी मेटा (फेसबुक) ने अपना एक नया ऐप थ्रेड्स  बीते 06-जुलाई को लांच कर दिया जिसकी चर्चा काफी दिनी से इंडस्ट्री में चल रही थी और ऐसे कयास लग रहे थे की ये कुछ नायाब होगा जो सोशल मीडिया को एक नयी दिशा दे सकता है कुछ इसको टिकटोक का विकल्प भी बता रहे थे

इंस्टा के इस नए ऐप के लांच होते ही सोशल मीडिया पर भूचाल आ गया महज २ घंटे के भीतर 20 लाख और अगले 7-8 घंटे में यह अकड़ा करीब 1 करोड़ को पार कर गया हर कोई सिर्फ थ्रेड्स  को डाउनलोड करके फटाफट अकाउंट बना लेना चाह रहा है माने ओपनिंग धमाकेदार हुयी लेकिन इस्तेमाल के बाद हाथ ज्यादा कुछ आया नहीं यह सीधे सीधे ट्विटर का प्रतिद्वंदी लग रहा है जिसकी सीधी टक्कर ट्विटर से है|


कैसे काम करता है थ्रेड्स?

इसके इस्तेमाल के लिए सबसे पहले इसे गूगल प्ले स्टोर या एप्पल स्टोर से डाउनलोड करके अपने इस्टाग्राम अकाउंट से सीधे लॉगिन करना है अलग से अकाउंट बनाने कि जरुरत नहीं |

थ्रेड्स ऐप क्या वाकई में ट्विटर को टक्कर दे पायेगा?

जैसा की सोशल मीडिया की दुनिया में हमेशा ऐसा होता रहा है कि कोई भी नयी चीज को लोग हाथो हाथ लेते है लेकिन केवल वायरल हो जाना किसी की सफलता तय नहीं करता जब तक की उसके फीचर यूसर्स को पसंद न आये हालांकि अभी यह अपने बाल्यावस्था में है अतः मेटा को यदि इसको सफल बनाना है तो पालन पोषण में काफी मेहनत करना पड़ेगा इसलिए अभी कुछ भी कहना जल्दीबाजी होगी |

लेकिन जो लोग पहले से ट्विटर पर है और उसका अच्छा इस्तेमाल कर रहे है उनके लिए कुछ ख़ास नहीं है इसमें थोड़े बहुत बदलाव के अलावा, जैसे ट्विटर में जहां वर्ड लिमिट 280 कैरेक्टर्स है तो थ्रेड्स में यूजर को 500 कैरेक्टर्स की लिमिट मिल रही है, टेक्‍स्‍ट के साथ यूजर्स लिंक, फोटो और वीडियो पोस्‍ट कर सकते हैं. और वीडियो लिमिट भी ट्विटर के मुकाबले थोड़ी ज्यादा है मतलब 5 मिनट की |

मास्टरस्ट्रोक क्या है?

अपने इंस्टाग्राम के 200 करोड़ यूसर्स को सीधे थ्रेड्स के साथ जोड़ना मेटा का मास्टरस्ट्रोक है क्युकी ट्विटर को टक्कर देने की कोशिश पहले भी 1-2 बार हुयी है जिसमे एक बहुत बड़ा नाम KOO का शामिल है जिसको प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रोमोट करने के बाद भी यूसर्स नहीं मिले वही गलती मेटा दोहराना नहीं चाह रहा होगा क्युकी आज के दौर में किसी ऐप पर नए यूसर्स लाना सबसे बड़ा चैलेंज है|

तो फिर करना क्या है ?

करना तो अब मार्क जुकरबर्ग और एलन मस्क को है जो वो कर ही रहे है हमें तो बस ऐप इनस्टॉल करके समय समय पर अपडेट करते रहना है ताकि नए फीचर अगर जुड़े तो उसका इस्तेमाल करते रहे और जो लोग ट्विटर से बोर हो गए है उनके लिए एक अच्छा विपल्प है अकाउंट बनाकर फोल्लोवेर्स बढ़ाना शुरू करे बाकि तो आने वाला वक़्त बताएगा की ये धागा टूटेगा, लटका रहेगा या रस्सी की तरह मजबूत बनेगा |


मार्क जुकरबर्ग और उनकी टीम को शुभकामनाये !!🙏

April 10, 2017

समय


घर की खिड़की के बहार आज जब मै कुछ बच्चो को खेलते  देखता हु
यह सोचता हु की समय वह मेरा किस तरह निकल गया,
समय वह मेरा, उँगलियों से मानो पतली रेत सा किस तरह  फिसल गया।

समय, जो कभी मेरे पास भरपूर था ,
समय, जिससे बेखबर मै  मौज मस्ती में चूर था ,
समय, जिसके होने का पहले मुझे एहसास ही न था ,
समय, जिसका बीत जाना  ज़्यादा कुछ  ख़ास  न था।
अब उसी समय को पाने के लिए मै  बेचैन हो छटपटाता हु,
उस समय की खोज में कभी परेशान, तो कभी खुद पर ही खीज जाता हु।

उस समय को  जिसे कभी मैंने नाकारा था,
उसकी अधिकता के अभिशाप को मैंने जब एक वरदान माना था।
इस महापाप को तुम नाही करो तोह ही अच्छा  है,
इस समय के मायाजाल में तुम न ही फसो तोह ही अच्छा है।


भगवान् न करे की तुम भी कभी जब खिड़की के बाहर कुछ बच्चो  को खेलते देखो,
तो तुम्हे यह न सोचना पड़े की,
समय वह तुम्हारा जाने कहा निकल गया,
समय वह तुम्हरा उँगलियों से पतली रेत सा न जाने कहा  फिसल गया।  

(लेखक परिचय:  वैभव दुबे, बाल साहित्यकार)

March 30, 2017

पहले बात कुछ और थी

पहले बात कुछ और थी और अब बात कुछ और है.
पहले दिन में दो-चार बार तो यूही मिला करते थे हम,
दो बाते यार से तो युही किया करते थे हम
अब तो मानो होठ हम सी से चुके है,
बाते मनो अब हम घोल  चुके है।

पहले बात कुछ और थी और अब बात  कुछ और है।
एक साथ हमने जो घंटो का समय काटा था,
उनकी एक मुस्कराहट से हमे जो सुकून आता था,
अब तो न समय का पता रहता है,
न उस मुस्कराहट की आरज़ू
अब तोह याद भी नहीं की कितने दिन हो गए
बिना हुए उनके रूबरू।


पहले बात कुछ और थी, और अब बात कुछ और है।
काश इन यादो को हकीकत में मरोड़ा जा सकता,
काश कुछ टूटे टुकड़ो को फिर से समेटा जा सकता,
काश उन लम्हो की छड़ी फिर लग जाती,
काश एक बार फिर खुशहाली छा जाती,
तोह शायद बात कुछ और हो पाती।


(लेखक परिचय:  वैभव दुबे, बाल साहित्यकार)

March 27, 2017

ज़िन्दगी की परिभाषा

क्या है ज़िन्दगी ?

क्या दौलत, शोहरत, रुतबा है ज़िंदगी,
क्या गाडी, बंगला, नौकर चाकर है ज़िन्दगी?

प्रश्न थोड़ा पेचीदा है पर उत्तर बेहद सरल
न दौलत, न शोहरत, न पैसा न रुतबा, हर पल में है ज़िन्दगी |

एक ऐसा पल जो हसाए, दो ऐसे पल जो रुलाये
एक पल जो जीने  का मतलब सिखाए यह है ज़िन्दगी |

सब चीज़ों से परिपूर्ण नहीं, सब चीज़ों में परिपूर्ण है ज़िन्दगी
आत्मसुख नहीं, आत्मअनुभव है ज़िन्दगी |

फूलो की खुसबू , पंछी की आवाज़, पत्तो की सरसराहट, नदी का बहाव,
ज़िन्दगी वो नहीं जो तुम बनाओ, ज़िन्दगी वो है जो तुम्हे बनाये |


(लेखक परिचय:  वैभव दुबे, बाल साहित्यकार)


November 17, 2016

एक पड़ताल सोनम गुप्ता बेवफा क्यों है?

भारत में नए नोट बाजार में आने के साथ एक और नाम इन दिनों खूब चर्चा में है वो नाम है 'सोनम गुप्ता' का वो सोनम गुप्ता जो बेवफा है|

अब ये कौन है और इसने किसके साथ बेवफाई की है ये किसीको नहीं पता है फ़िलहाल सोसल मीडिया पर सोनम गुप्ता ने करेंसी (#currency) और काफी विद करण (#coffeewithkaran) जैसे विषय (hash tag) को भी पीछे छोड़ दिया है|

अब बात शुरू हुयी है कोई तो आगे भी बढ़ेगी ही, बात कही से भी शुरू हुयी हो लेकिन चुटकुलों का दौर नहीं थम रहा कोई सोनम को बेवफा कह रहा है तो कोई उसके साथ है जो ये कह रहा है की सोनम नहीं बल्कि उसका आशिक बेवफा है, नोट बदलवाने के चक्कर में परेशान लोंगो के लिए सोनम गुप्ता धुप की बारिश बन के आयी है लाइन में खड़े लोंगो का अच्छा टाइम पास हो रहा है लोग अपने अपने हिसाब से कयास लगा रहे है|

हालाँकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ नोटों पर लिखने की हमारी आदत बहुत पुरानी है नाम लिखे हुए नोट अकसर मिल जाते है लेकिन हम ध्यान नहीं देते बस एक हाथ से दूसरे हाथ में चले जाते है|
इसी आदत के चलते किसी आशिक़ ने 10 रु. के नोट पर लिख दिया "सोनम गुप्ता बेवफा है" हो सकता है वो काफी पहले लिखा हो लेकिन वो नोट किसीने सोशल मीडिया पर डाल दिया क्योंकि आज जमाना सोशल मीडिया का है जिसमे इतनी ताकत है की सरकार तक बदल जा रही है उस सोशल मीडिया से सोनम कैसे बच जाती, कुछ दिन तक ये सोशल मीडिया में छाया रहा लेकिन इतना असर नहीं हुआ फिर 8 नवम्बर को जब 500 और 1000 के नोट बंद होने का ऐलान हुआ तब पूरी दुनिया भारतीय नोटों के बारे में बात करने लगी यहाँ तक की अमेरिका में होने वाला चुनाव भी चर्चा का विषय नहीं बन पाया|

उसके बाद जब पहली बार 2000रु. के नोट भारतीय बाजार में आये तो लोंगो ने उस नोट की खूब बातें की किसीने उसके गुलाबी रंग के बारे में लिखा तो किसी ने साइज़ के बारे में ऐसे ही जब किसीने ये लिखा कि 2000 रु. के नोट पर सोनम गुप्ता बेवफा है लिखने के लिए काफी जगह है.. बस इतना लिखना था कि सोनम गुप्ता फिर से आ गयी चर्चा में क्योंकि इस समय नोटों पर चर्चा का माहौल है ऐसे में लोग सोनम गुप्ता पर अपनी अपनी राय सोशल मीडिया पर व्यक्त करने लगे देखते देखते मजाक और कमेंट का दौर बढ़ता गया और सोनम गुप्ता हो गयी वायरल|

सोनम गुप्ता की पूरी कहानी यहाँ पढें -

"बात है 2010 की. सोनम गुप्ता का इंटर पूरा हो गया था. रिजल्ट का इंतजार था. समय था फॉर्म भराई का. रोज साइबर कैफे के चक्कर लगते. क्योंकि गुप्ता अंकल मानते थे कि इंटरनेट लगवाने से बच्चे बिगड़ जाते हैं.

विक्की भइया बीकॉम थर्ड इयर में घिस-घिस के पहुंच चुके थे. सबसे जिगरी दोस्त अतुल निगम की शादी हुई थी अभी लेटेस्ट में. तबसे अतुल निगम ऐसा बेडरूम में घुसे थे कि निकलने का नाम नहीं लेते थे. विक्की भइया ने अकेलेपन में फेसबुक का सहारा ले लिया था.

5 बजे सोनम गुप्ता साइबर कैफ़े पहुंचती. आधे घंटे के 10 रुपये लगते थे. साढ़े पांच बजे गुप्ता अंकल ऑफिस से लौटते हुए स्कूटर का हॉर्न देते. सोनम पापा के साथ घर चली जाती. जबसे विक्की भइया ने सोनम को देखा था, साइबर कैफ़े जाने का टाइम बदल दिया था. 8 दिन. पूरे 8 दिन सामने वाली कंप्यूटर स्क्रीन के पीछे सोनम को देखते रहे. इंटरनेट सोनम के लिए नई चीज थी. एक अद्भुत खिलौना था. आंखें फाड़ के चीजें देखा करती. कभी कभी मुस्कुराती. विक्की भइया का अकेलापन मिटता जाता.

8वें दिन सोनम फिर उसी कंप्यूटर पर बैठी. विक्की भइया अपने कंप्यूटर पर. सोनम धीरे-धीरे टाइप करती. कैफ़े के कीबोर्ड पर आवाज तेज-तेज होती. सोनम हल्के-हल्के से मुस्कुराती. कभी तेजी से ब्लश करती और दांत से अपनी मुस्कान काट के रोक लेती. अचानक सोनम की आंखें उठीं. विक्की भइया से मिल गईं. विक्की भइया तो जैसे बेहोश. स्क्रीन पर देखते हुए तेजी से फ्यूचर की प्लानिंग करने लगे. ये तक सोच लिया गुप्ता अंकल से बेटी का हाथ मांगेंगे तो क्या कहेंगे.

इतने में पापा के स्कूटर का हॉर्न बजा. सोनम हड़बड़ा गई. चेहरे की रंगत बदल गई. जल्दी-जल्दी टाइप करने लगी. हॉर्न फिर से बजा. कांच के दरवाजे से देखा पापा झांक रहे थे. सोनम उठी, और झट से भाग गई.

विक्की भइया उठे. बेखुदी में सोनम के कंप्यूटर पर पहुंचे. हाय, उसका फेसबुक खुला छूट गया था जल्दी में. एक चैट विंडो खुली थी. विक्की भइया खुद को रोक नहीं पाए. मैसेज पढ़ते गए. ऐसा लगता कोई जानवर अपने नुकीले पांव उनके कलेजे में धंसाता जा रहा है. इतने में पीछे से आवाज आई, ‘विक्की भइया, आधा घंटा हो गया. टाइम बढ़ा दूं?’

‘नहीं’, विक्की भइया ने कहा. कुर्सी से उठे. चमड़ी छोड़ते पर्स से 10 का नोट निकाला. जाते जाते उसपर लिखा, ‘सोनम गुप्ता बेवफा है’. और नोट थमाकर बाहर निकल गए. फिर कभी उस कैफ़े में लौटकर नहीं आए. "

तो ये थी सोनम गुप्ता के बेवफाई की कहानी हमारे अनुसार अगर आपके अनुसार कुछ और है तो निचे कॉमेंट बॉक्स में लिखें ....