माँ

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February 21, 2011

माँ


हिमालय से ऊची है 'माँ'  किंतु पाषांड सी कठोर नही
सागर सी गहरी हैं 'माँ'  किंतु सागर सी खारी नही,
वायु सी गतिशील है 'माँ' किंतु वायु सी अदृश्य नही
परमेश्वर की जननी है 'माँ' किंतु परमेश्वर सी दुर्लभ नही,
माँ की कोई उपमा नही, क्यूकी माँ "उप - माँ" नही हो सकती.

2 comments:

  1. उत्तम प्रस्तुति...

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसके आलेख "नये ब्लाग लेखकों के लिये उपयोगी सुझाव" का अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । शुभकामनाओं सहित...
    http://najariya.blogspot.com/2011/02/blog-post_18.html

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  2. your concept is very effective

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