देश मे हो रहे तमाम घटनाओ और उस पर पुलिसिया कार्यवाही को देखकर मुझे एक कहानी चरितार्थ होती दिख रही है|
कहानी
है एक मंत्री जी की जिनका हिरन
जंगल मे कही खो गया अब मंत्री
जी का हिरन है कोई मजाक बात तो
है नही
कैसे
भी उसको ढूढ़ कर लाना था तो
पहले लंदन की पुलिस से मदद ली
गयी और उनको हिरन का फोटो देकर
हुलिया बता पुछा गया कि आप
हिरन कितने दिन मे ढूढ़
देंगे? उन्होने
कहा एक हफ्ते मे लेकिन काफ़ी
मसक्कत के बाद भी जब हिरन नही
मिला तो फिर अमेरिकी पुलिस
से मदद ली गयी तो उन्होने एक
महीने का समय लिया लेकिन वो
भी अपनी पूरी तकनीकी और पूरी
ताक़त लगाने के बाद भी सफल नही
हो पाए तब मंत्री जी ने आखिर
में अपने यहाँ के पुलिस को
बुलवाया और रोब झाड़ते हुए
कहा कि "मेरा
हिरन मुझे 24 घंटे
के अंदर चाहिए|”
फिर
क्या था बिना किसी पूछताछ 4पुलिस
वाले दौड़ा दिए गये और 2ही
घंटे मे क्या देख रहे है कि वो
चारो पुलिस वाले एक हाथी पकडे
आ रहे है और हाथी कह रहा है -
"मै
हिरन हूँ...मै
हिरन हूँ...मै
हिरन हूँ.”
दिल्ली में एक private बस में एक शर्मनाक घटना घटी जिसने पुरे देश में खलबली मचा रखी है जिस दिन ये वारदात हुआ अगले दिन पुलिस वालो ने 170 "Illegal" बसों को सील कर अपनी पीठ ठोक ली | अरे भाई अगर इतनी सारी बसे "Illegal" थी तो अब तक चल क्यों रही थी? क्या इसी वारदात के इंतज़ार में?
दूसरी
घटना इंडिया गेट की जब देल्ली
पुलिस के एक constable तोमर
जी की मौत हो गयी
(जो नहीं होनी चाहिए थी) आनन - फानन में 4-5 लोगो को उस मौत का जिम्मेदार बता पकड़ लिया गया दुसरे दिन खबरिया चैनल्स बताने लगे की तोमर जी की मौत “heart attack" से हुयी और जो लोग पकडे गए वो तो इंडिया गेट गए ही नही थे किसी को रस्ते से पकड़ा गया तो किसीको मेट्रो से...सुभानल्लाह...
(जो नहीं होनी चाहिए थी) आनन - फानन में 4-5 लोगो को उस मौत का जिम्मेदार बता पकड़ लिया गया दुसरे दिन खबरिया चैनल्स बताने लगे की तोमर जी की मौत “heart attack" से हुयी और जो लोग पकडे गए वो तो इंडिया गेट गए ही नही थे किसी को रस्ते से पकड़ा गया तो किसीको मेट्रो से...सुभानल्लाह...
अब
अगर बात इस पुरे घटना की करे
तो जो कुछ भी हुआ या हो रहा है
ये सब जनता की भागीदारी की वजह
से ही हो रहा है वरना हमारे
माननीयो ने तो ऐसे ऐसे
बयानबाजियां की जिसको सुन
हँसी भी आती है और दुःख भी होता
है | जैसे - किसीने
कहा कि ऐसी घटनाये रोज होती
है, तो
किसीने कहा मामले को बेवजह
तूल दिया जा रहा है, तो
किसीने लडकियों के पहनावे पर
ही सवाल खड़ा कर दिया कि लडकिया
ही भड़काती है लडको को ऐसे काम
करने के लिए |
अब
उनसे कोई पूछे कि अगर ऐसा है
तो दो - ढाई
साल कि बच्ची या 40
-
50
साल
कि औरतो के साथ रेप क्यों होता
है?
खैर
बड़े लोग बड़ी बातें पुराने
कमेंट्स तो पुराने हो गए अभी
आज (इतना
सब होने के बाद) एक
महिला कृषि वैज्ञानिक ने
म.प्र. में
एक सेमिनार में कहा है कि -
“10 बजे
रात को वो लड़की घर से बाहर
क्या कर रही थी? फिर
कहा- ब्वॉय
फ्रेंड के साथ रात को बाहर
निकलेगी तो यही होगा। पुलिस
कहां तक संरक्षण देगी।(मतलब
जो हुआ अच्छा हुआ हुंह..)
इतना
ही नहीं पीडिता के प्रतिरोध
को भी उसका दुस्साहस बता दिया।
उनका कहना था- हाथ
पांव में दम नहीं, हम
किसी से कम नहीं | छह
लोगों से घिरने पर लड़की ने
चुपचाप समर्पण क्यों नहीं कर
दिया। कम से कम आंतें निकालने
की नौबत तो नहीं आती। उन्होंने
कानूनों की बात भी की। उनका
निष्कर्ष था सुविधाओं और
अधिकारों का महिलाओं ने गलत
इस्तेमाल किया है। इसलिए ऐसे
मामलों में पुलिस का रवैया
बिलकुल ठीक है।"
वाह!! बहुत
खूब...
इसका
मतलब अगर कुछ नामर्द किसी
अकेली लड़की से अपनी मर्दांगनी
दिखाए तो लड़की उसका विरोध न
करके उनसे कहे कि "लो
जो करना है कर लो मै बनी ही
इसिलिये हु?"..छि:
...अगर
महिलाये ही महिलायों के प्रति
ऐसी सोच रखती है तो फिर क्या
मतलब है इन कैंडिल मार्च और
जनांदोलनो का??