जब बात शास्त्रीय संगीत की आती है तो दिमाग में एक शांत सा चेहरा, लम्बे बाल और भारतीय कपड़ो में लिपटे हुए 45-50 साल के शख़्श की तस्वीर उभर आती है.
लेकिन मेरी यह कल्पना तब मात खा गयी जब मै 'नवनीत बैरागी' से मिला पारम्परिक शास्त्रीय कलाकारों से बिलकुल बिपरीत छोटे बाल, हलकी दाढ़ी, जीन्स जैकेट पहने दिखने में बिलकुल कूल - डूड टाइप, ऐसे व्यक्ति से तबला, पखावज, तानपूरा, घुंघरू, शहनाई, बांसुरी, ध्रुपद, धमार, ठुमरी, कथक, भरतनाट्यम, मणिपुरी आदि के बारे में जानना सुनना आश्चर्य की बात है लेकिन कही न कही सुकून भी मिला क्युकि आज के दौर में "रियलिटी शो" ने शास्त्रीय संगीत को ख़त्म सा कर दिया है आज की युवा पीढ़ी का पश्चयात संगीत की ओर बढ़ना स्वाभाविक बात हो गई है क्युकि ऐसे संगीत बनाना कंप्यूटर के माध्यम से बेहद आसान हो गया है आज हर कोई आसान रास्ता अपनाकर जल्दी से जल्दी प्रसिद्धि पाना चाहता है और ये बात भूल गया है कि संगीत का कोई शार्टकट नही है और हर कलाकार को सात स्वर को समझना जरूरी होता है।
कहते है इंसान होना भाग्य की बात है और कलाकार होना शौभाग्य की, मुझे ख़ुशी है कि आज के दौर में भी मित्र नवनीत जी जैसे युवा मौजूद है जो तकनिकी क्षेत्र में कार्यरत होते हुए भी न सिर्फ शास्त्रीय संगीत में गहन रूचि रखते है बल्कि उसकी विधिवत शिक्षा भी ले रहे है और अपनी इस प्रतिभा को कायम रखने और निखारने का निरंतर प्रयास भी कर रहे है नवनीत का रुझान संगीत में तब से शुरू हुआ, जबसे उनके शिक्षक ने उन्हें सजा के रूप में भजन जाने को कहा। और जिसे सुन सारे लोग प्रभावित हुए। यही से उनके प्रतिभा का आभास हुआ। उसके बाद धीरे धीरे विद्यालय एवं जिला स्तर कई सारी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिए और पुरस्कार भी जीते.
शुरूआती दौर में तो कही से संगीत की शिक्षा नहीं ली, लेकिन 2006 में भजन शिरोमणि "पंडित शिव प्रसाद शुक्ल" के संपर्क में आने के बाद संगीत की शिक्षा ग्रहण करनी शुरू की जो काबिले तारीफ है..
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फोटो - Navneet Bairagi |
जन्म स्थान: जबल पुर (मध्य प्रदेश )
शिक्षा: बी ई.
निवास: दिल्ली