May 2015

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May 08, 2015

सलमान खान की सजा – एक राष्ट्रिय शोक

नवम्बर 30, 2013 को अमेरीका के अभिनेता पॉल वॉकर की मौत जब सड़क हादसे में हुई तो तमाम सेलीब्रटी मीडिया के जरिए अपनी संवेदनाएं लोगों तक पहुँचाने लगे। मीडिया ने ऐसा माहौल बनाया लगा कि जैसे उनकी मौत कहीं राष्ट्रीय शोक में तब्दील हो जाए।

वहीं  यहां सलमान खान ने खुद शराब के नशे में पांच लोगों को रौंद डाला। एक की मौत हो गई चार घायल हो गए। लेकिन ट्विटर और फेसबुक पर सितारों के विलाप, गुस्से और संवेदनाओं को दिखाकर मीडिया ने लोगों के मन में पीड़ित के बजाए दोषी के पक्ष में संवेदनाएं जगा दी।

सलमान खान के लिए हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ग़मगीन है। लोगों की भावनाएं फेसबुक, ट्विटर पर उमड़ रही हैं। फिल्म में हीरो का किरदार करने वाले व्यक्ति को लोग असल में भी हीरो ही मानते हैं। हमारे लिए वो इन्साफ से भी ऊपर है। कितने ही लोग सलमान के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, उनके बचाव में पीड़ितों को गाली देकर कह रहे हैं कि फुटपाथ पर सोने वाले ऐसी ही कुत्ते की मौत मरते हैं।


हमारे हीरो को ये क्यों नहीं पता होता है कि शराब पीकर गाड़ी चलाना कानूनन जुर्म है। अगर फुटपाथ सोने के लिए नहीं है तो गाड़ी चढ़ाने के लिए भी नहीं होता है।
अपने पसंदीदा शख्स के लिए हमदर्दी होना कोई बुरी बात नहीं है। लेकिन मीडिया ने जिस तरह की कवरेज दी है, उससे तो सलमान खान को पसंद ना करने वाले के दिल में भी हमदर्दी पैदा हो जाएगी।

सलमान खान ने शराब पीकर गाड़ी चलायी, बिना लाइसेंस के गाड़ी चलायी और नशे में कुछ लोगों को घायल कर के भाग गए। फिर 13 साल तक मानसिक तनाव के साथ बचने के रास्ते खोजते रहे।

आज कोर्ट ने उन्हें अधिकतम सज़ा ना देते हुए केवल 5 साल की सज़ा दी है। ये कम हुई सज़ा भी उन्हें अपनी 2007 में बनी 'Being Human' संस्था के कामों को मद्देनज़र रखते हुए दी गयी है।

सोचिये, अगर सलमान खान वहां से ना भागते, घायलों को अस्पताल पहुंचा देते और खुद को पुलिस के हवाले करके कोर्ट के सामने अपनी गलती क़ुबूल करते हुए पीड़ितों की ज़िम्मेदारी उठाते तो क्या होता?
अगर 2002 में उन्होंने अपनी गलती मान ली होती तो कोर्ट शायद उन्हें 3 साल की सज़ा ही देता और उन्हें जेल ना जाना पड़ता। इस भयंकर मानसिक तनाव को 13 साल तक ना ढोते। मीडिया और मेरे जैसे कई लोगों के वो हीरो होते। लेकिन हम लोग अपने ज़मीर से ज़्यादा अपने वकीलों पर भरोसा करते हैं।

टीवी पर सलमान खान के पक्ष में कोई नमाज पढ़ता दिखा तो कोई हवन करता हुआ। लेकिन इस प्रक्रिया में न्याय के जरिए कैसे पीड़ितों को इंसाफ और ताकतवर सेलीब्रेटी को सजा मिली, इसका जिक्र कहीं नहीं हुआ।

यही होता है सेलीब्रेटी सिमपैथी की हवा बनाने के साइड इफेक्ट जहां सजा सुनाने वाला कोर्ट छोटा हो गया और दोषी का कद बड़ा।