March 2017

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March 30, 2017

पहले बात कुछ और थी

पहले बात कुछ और थी और अब बात कुछ और है.
पहले दिन में दो-चार बार तो यूही मिला करते थे हम,
दो बाते यार से तो युही किया करते थे हम
अब तो मानो होठ हम सी से चुके है,
बाते मनो अब हम घोल  चुके है।

पहले बात कुछ और थी और अब बात  कुछ और है।
एक साथ हमने जो घंटो का समय काटा था,
उनकी एक मुस्कराहट से हमे जो सुकून आता था,
अब तो न समय का पता रहता है,
न उस मुस्कराहट की आरज़ू
अब तोह याद भी नहीं की कितने दिन हो गए
बिना हुए उनके रूबरू।


पहले बात कुछ और थी, और अब बात कुछ और है।
काश इन यादो को हकीकत में मरोड़ा जा सकता,
काश कुछ टूटे टुकड़ो को फिर से समेटा जा सकता,
काश उन लम्हो की छड़ी फिर लग जाती,
काश एक बार फिर खुशहाली छा जाती,
तोह शायद बात कुछ और हो पाती।


(लेखक परिचय:  वैभव दुबे, बाल साहित्यकार)

March 27, 2017

ज़िन्दगी की परिभाषा

क्या है ज़िन्दगी ?

क्या दौलत, शोहरत, रुतबा है ज़िंदगी,
क्या गाडी, बंगला, नौकर चाकर है ज़िन्दगी?

प्रश्न थोड़ा पेचीदा है पर उत्तर बेहद सरल
न दौलत, न शोहरत, न पैसा न रुतबा, हर पल में है ज़िन्दगी |

एक ऐसा पल जो हसाए, दो ऐसे पल जो रुलाये
एक पल जो जीने  का मतलब सिखाए यह है ज़िन्दगी |

सब चीज़ों से परिपूर्ण नहीं, सब चीज़ों में परिपूर्ण है ज़िन्दगी
आत्मसुख नहीं, आत्मअनुभव है ज़िन्दगी |

फूलो की खुसबू , पंछी की आवाज़, पत्तो की सरसराहट, नदी का बहाव,
ज़िन्दगी वो नहीं जो तुम बनाओ, ज़िन्दगी वो है जो तुम्हे बनाये |


(लेखक परिचय:  वैभव दुबे, बाल साहित्यकार)