November 2011

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November 27, 2011

कैसा होगा हमारा लोकपाल?

इस  समय पुरी दुनिया की निगाहे भारत के संसद मे चल रहे शीतकालीन सत्र पर लगी है| 
क्युकि इसी के बिल(छेद) से लोकपाल के निकलने की प्रतीक्षा है| वह कैसा होगा? 
मजबूत या दुबला-पतला? मोटा की हलका? जब निकलेगा, तभी से लोकपाल हो जाएगा या नाल कटने के बाद? लोकतंत्र के सरकारी अस्पताल मे उसके बाप और रिश्तेदार बेचैनी से टहल रहे है| 
आती जाती नर्सों से पूछताछ कर रहे है| पता नही लड़के के स्वाभाव का या लड़की के स्वाभाव का होगा? 
बिना हाईकमान के पूछे भ्रूण हत्या भी तो नही करा सकते| 
सतमासी निकेलेगा, तो बचना भी मुश्किलहै| 
सभी रिश्तेदार सोहर गा रहे है| अब आगे क्या होगा बिल से लोकपाल निकले या साप, बिच्छू, अज़गर तमाशा तो होगा ही क्यूकी ये भारत का लोकपाल है, और हमारी सरकार जिधर पाव पसारे है, उधर अन्ना हज़ारे है|

November 22, 2011

कुछ बातें जो समझ से परे.

  • जब कोई व्यक्ति आ ही गया है तो लोग ये क्यू कहते है कि: "आ गये?"
  • बारिश अंदर तो होती नही तो लोग ये क्यू पुछते है कि: "बाहर बारिश हो रही है क्या?"
  • कोई दूसरे की आँखो से नही देखता और ना दूसरे के कानो से सुनता है फिर लोग ये क्यू कहते है कि: "मैने अपनी आँखो से देखा है या मैने अपने कानो से सुना है?"
  • राँग नंबर कभी इंगेज क्यू नही जाता?
  • जब हम जल्दी मे होते है तभी चौराहे पर लाल बत्ती क्यू मिलती है?
  • दवाई या फोन की दुकान पर लिखा होता है कि दुकान 24 घंटे खुली है तो फिर उसके दरवाजो मे ताला लगाने की जगह क्यू बनी होती है?
  • जो नेता अभी तक नेहरू परिवार पर वंशवाद का आरोप लगाते रहते थे वो अपने बेटे बेटियो को राजनीति मे क्यू ला रहे है?
  • बात बात पर अमेरिका, यूरोप की आलोचना करने वाले लोग फोन, टीवी, कार का इस्तेमाल क्यू करते है? जो की पश्चिमी देशो की देन है|

बिसरी यादों के पन्ने..

दिल से कुछ देर उसको जुदा कैसे रखूँ,
मेरे बस मे नही खुद को उससे खफा र
खूँ?
नही है मेरे दिल मे सिवा उसके
मै उसको भुला दू तो याद क्या र
खूँ??
***     ***       ***
तुम पास होते तो कोई शरारत करते,
तुम्हे लेकर बाहों मे मोहब्बत करते,

देखते तेरी आँखो मे नींद का खुमार,
और अपनी खोई हुई नींदो की शिकायत करते

वो मेरी वाफ़ाओं का सिला कुछ इस तरह से देता है...

वो मेरी तमाम वाफ़ाओं का सिला कुछ इस तरह से देता है
बात करके कुछ ऐसी मुझे मेरी नज़रों से गिरा देता है |

ख्याल रखता है वो मेरा कुछ इस तरह से
के ज़ुबान के नश्तर से मुझे मार देता है |

उसकी बात फाँस बन कर अटक जाती है मेरे दिल में
वो कभी कभी बिन मौत मुझे मार देता है |

बनती है फिर मेरी ज़ात ही शिकवे शिकायतों का मेहवार
यूँ लगता है मुझे वो मेरे होने की सज़ा देता है |

ना जाने कैसे सहता है वो मेरे वजूद को
मुझे अपने उपर बोझ क़रार देता |

भूल जाता हूँ मैं बहुत जल्द इन ज़्यादतियों को
वो जब एक बार मुझे देख कर मुस्कुरा देता है |

इतने पास न जा

किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
ऐसा सोच कर अकेले न रहना,
किसी के पास जाने से न डरना
न सोच अकेलेपन मे कोई गम नही,
खुद की परछाई देख बोलोगे "ये हम नही" ...

November 12, 2011

हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले

हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले,
कदम-दर-कदम हौसला कर चले|

उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले

लिखा जिंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले|

वो आये जो महफ़िल में मेरी, मुझे
नजर में सभी की खुदा कर चले

बनाया, सजाया, सँवारा जिन्हें
वही लोग हमको मिटा कर चले|

उन्हें रूठने की है आदत पड़ी
हमारी भी जिद है, मना कर चले

जो कमबख्त होता था अपना कभी
उसी दिल को हम आपका कर चले|