August 2011

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August 10, 2011

15 अगस्त 1947 से 15 अगस्त 2011 तक

15 अगस्त एक ऐसा दिन जिस दिन हम अपने व्यस्त समय से समय निकाल चर्चा करते है अपने देश के बारे मे, उसके विकास के बारे मे, पुराने नेताओ की तारीफ तो नये को गाली, कुछ बुढ्ढजीवी लोग देश की तरक्की की भी बात करते है और ये सब पूरा दिन चलता है| और ऐसा बनारस के छोटे-मोटे कस्बे से लेकर दिल्ली तक चलता है|
मुझे 1947 से पहले का तो पता नही क्युकि पुनर्जन्म की बाते मुझे याद नही रहती पर जो सुना, पढ़ा उसके अनुसार मौजूदा हालत की तुलना करता हूँ तो यक़ीनन सिर गर्व से उँचा हो जाता है| अब हम एक लहुलुहान देश नही है, बल्कि हमारी ताक़त का लोहा दुनिया मानती है, कुछ मूलभूत समस्याए जैसे बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, ग़रीबी आज भी हमारे यहाँ कायम है पर ऐसा संसार के किस देश मे नही है? क्या सबसे ताकतवर अमेरिका मे (जिसने अपनी आज़ादी की 234वी वर्षगाँठ मनाई है) ग़रीबी नही है? क्या वहाँ बेरोज़गार नही बढ़ रहे? क्या ओबामा से पहले कोई अश्वेत या कोई महिला राष्ट्रपति बन पाई? दुनिया का स्वर्ग माना जाने वाला अमेरिका क्या अंदरूनी तौर से डर का शिकार नही? अगर ये सब सच है तो हमे गर्व करना चाहिए की हमने 64 साल मे बेहद महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की| हमे ये नही भूलना चाहिए की सफलता बरकरार रखने के लिए नयी नयी चुनौतियो का सामना करना पड़ता है| इस समय पूरी दुनिया मे जबरजस्त परिवर्तन का दौर है ऐसे मे हमे अपनी समस्यायों से जूझने की सामूहिक रणनीति बनाने की ज़रूरत है| मोबाइल पर मैसेज और माइक पर लोकप्रिय भासण की नही|

August 03, 2011

कुछ खास होता है ये Friendship Day

"फ़्रेंडशिप डे" आने वाला है और कई सारे सवाल भी ला रहा है.
वेसे तो विदेशो से बहुत से "डे" भारत आए देखा जाए तो हर दिन कोई न कोई डे होता ही है, 
लेकिन फ्रेंडशिप डे का अपना अलग महत्व है, क्युकि मामला दोस्ती का है और कहा जाता है 
कि इंसान को सारे रिश्‍ते जन्‍म के साथ मिलते है बस दोस्त वो जन्म के बाद बनता है.
ये रिश्ता उसका अपना होता है जिसका मॅनेज्मेंट उसके हाथ है जब चाहे रखे जब चाहे छोड़ दे. 
ना समाज का डर ना परिवार वालो का..
दोस्त हमेशा वो करने मे मदद करते है जो आप करना चाहते है. 
अच्छे दोस्त बुरे दोस्त ये किस्मत से मिलते है,
मैं इस मामले मे खुदा का शुक्रगुज़ार हू की उसने हमेशा मुझे अच्छे दोस्त दिए 
वो दोस्त जिन्होने मेरे उड़ने के लिए आसमान बनाए तो दौड़ने के लिए ज़मीन.
आज भागदौड़ की ज़िन्दगी मे वो दुर तो है पर जुदा नही..

वक़्त के साथ इंसान की जरूरते, ख्वाहिशे बदलती रहती है 
जिन्हे पूरा करने के चक्कर मे वो धीरे धीरे दोस्तो से दूर होने लगता है
ऐसे मे ये दिन हमे उन सुनहरे दिनो को याद करने के लिए मजबूर करता है 
जो ज़िंदगी का सबसे बेहतरीन पल थे 
जिसे याद करके हम फिर एक नयी ताज़गी का अनुभव करते है..
तो क्युना एक दिन हम उन दिनो को याद करे 
जब हम चाय के पैसे देने के लिए एक दुसरे की जेबे देखा करते थे
वो चाय आज किसी बड़े रेस्तरा की चाय से ज़्यादा जयकेदार थी,
सिगरा पर बैठे बैठे पूरा दिन गुज़ार देते थे गप्पे लड़ाते लड़ाते,
आज भले फोन पर बात करने की फ़ुर्सत न मिले.
काम एक का रहता जाते दस थे, आज भले अपना काम करने की फ़ुर्सत न हो..
कैंट से गोदौलिया एक समोसे पर पैदल चले जाते थे फिर भी ना थकते थे 
आज ऑफीस से घर आने मे थक जाते है..
कालेज जाना तो बहाना था हमे तो रिलेशनशिप पता लगाना था..
मेस का खाना लाख बुरा हो पर सबसे पहले ख़ाते थे फिर गरियाते थे.
"दोस्तो पहले वक़्त था और कुछ नही आज सबकुछ है पर वक़्त नही.."