April 2011

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April 18, 2011

गब्बर सिंह का चरित्र चित्रण.

1. सादा जीवन, उच्च विचार: उसके जीने का ढंग बड़ा सरल था. पुराने और मैले कपड़े, बढ़ी हुई दाढ़ी, महीनों से जंग खाते दांत और पहाड़ों पर खानाबदोश जीवन. जैसे मध्यकालीन भारत का फकीर हो. जीवन में अपने लक्ष्य की ओर इतना समर्पित कि ऐशो-आराम और विलासिता के लिए एक पल की भी फुर्सत नहीं. और विचारों में उत्कृष्टता के क्या कहने! 'जो डर गया, सो मर गया' जैसे संवादों से उसने जीवन की क्षणभंगुरता पर प्रकाश डाला था.

. दयालु प्रवृत्ति: ठाकुर ने उसे अपने हाथों से पकड़ा था. इसलिए उसने ठाकुर के सिर्फ हाथों को सज़ा दी. अगर वो चाहता तो गर्दन भी काट सकता था. पर उसके ममतापूर्ण और करुणामय ह्रदय ने उसे ऐसा करने से रोक दिया.


3. नृत्य-संगीत का शौकीन: 'महबूबा ओये महबूबा' गीत के समय उसके कलाकार ह्रदय का परिचय मिलता है. अन्य डाकुओं की तरह उसका ह्रदय शुष्क नहीं था. वह जीवन में नृत्य-संगीत एवंकला के महत्त्व को समझता था. बसन्ती को पकड़ने के बाद उसके मन का नृत्यप्रेमी फिर से जाग उठा था. उसने बसन्ती के अन्दर छुपी नर्तकी को एक पल में पहचान लिया था. गौरतलब यह कि कला के प्रति अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का वह कोई अवसर नहीं छोड़ता था.


4.
अनुशासनप्रिय नायक: जब कालिया और उसके दोस्त अपने प्रोजेक्ट से नाकाम होकर लौटे तो उसने कतई ढीलाई नहीं बरती. अनुशासन के प्रति अपने अगाध समर्पण को दर्शाते हुए उसने उन्हें तुरंत सज़ा दी.

5.
हास्य-रस का प्रेमी: उसमें गज़ब का सेन्स ऑफ ह्यूमर था. कालिया और उसके दो दोस्तों को मारने से पहले उसने उन तीनों को खूब हंसाया था. ताकि वो हंसते-हंसते दुनिया को अलविदा कह सकें. वह आधुनिक यु का 'लाफिंग बुद्धा' था.


6.
नारी के प्रति सम्मान: बसन्ती जैसी सुन्दर नारी का अपहरण करने के बाद उसने उससे एक नृत्य का निवेदन किया. आज-कल का खलनायक होता तो शायद कुछ और करता.


7.
भिक्षुक जीवन: उसने हिन्दू धर्म और महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए भिक्षुक जीवन के रास्ते को अपनाया था. रामपुर और अन्य गाँवों से उसे जो भी सूखा-कच्चा अनाज मिलता था, वो उसी से अपनी गुजर-बसर करता था. सोना, चांदी, बिरयानी या चिकन मलाई टिक्का की उसने कभी इच्छा ज़ाहिर नहीं की.


8.
सामाजिक कार्य: डकैती के पेशे के अलावा वो छोटे बच्चों को सुलाने का भी काम करता था. सैकड़ों माताएं उसका नाम लेती थीं ताकि बच्चे बिना कलह किए सो ऍ

April 04, 2011

एक मन्नत जो पूरी हो गई।



एक अरब 21 करोड़ भारतीयों ने विश्व कप विजय की मन्नत मांगी थी, जो पूरी हो गई। धौनी ने जीत का छक्का क्या लगाया एक अरब 21 करोड़ भारतीयों का अरमान पूरा हो गया।
आप महसूस कर सकते हैं कि क्रिकेट के दीवाने किस तरह मैच से पहले कई तरह के विश्लेषण में मशगूल हो जाते हैं। सभी तरह के कयास, उपाय, सुझाव और न जाने क्या क्या, हर कोई हर तरह की चर्चा करता है, आप कहीं भी यह सब सुन सकते हैं।  भारत ने आज से 28 साल पहले विश्व खिताब पर कब्जा जमाया था। विश्व कप जीतना अपने आप में अद्भुत होता है। 1983 में जब हमारी टीम ने कप जीता था, तब देश में टीवी कम हुआ करते थे, जिससे अधिकांश लोगों को इस अद्भुत नजारे और इसके रोमांच का एहसास नहीं हो पाया होगा। 
आखिर 21 साल से देश को विश्व कप दिलाने का सपना देखने वाली तेंदुलकर की आंखों ने अपना सपना पूरा होते देख लिया।

 

April 01, 2011

भारतीय टीम की हार का कोई विकल्प ही नहीं

जब भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच क्र्वाटर फाइनल मैच होना था तो उसे मिनी-फाइनल कहा गया और अब भारत-पाकिस्तान सेमीफाइनल मैच को महा-मुकाबला और फाइनल से भी बड़ा फाइनल कहा जा रहा है। इस मैच को लेकर इतना अधिक माहौल बना दिया गया है कि शनिवार को होने वाला फाइनल मैच और अन्य क्रिकेट गतिविधियां अब द्वितीयक बातें प्रतीत हो रही हैं। परिदृश्य कुछ ऐसा है कि यहां भारतीय टीम की हार का कोई विकल्प ही नहीं बचता।

टीम के बल्लेबाजों ने लय हासिल कर ली है। युवराज सिंह ऑलराउंड प्रदर्शन कर रहे हैं। बहरहाल, टीम चाहे कितना भी बढि़या प्रदर्शन करे, यह संभव नहीं है कि उसके 11 के 11 खिलाड़ी हर मैच में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें, लेकिन भारत जैसे देश में कोई यह मानने को तैयार नहीं होता।


तो ट्रेलर में देखा गया सस्पेंस अब धीरे-धीरे अपने चरम पर पहुंच कर खत्म होने की तरफ बढ़ रहा है। यहां अब बेहतर नहीं बल्कि बेहतरीन करने का वक्त आ गया है। जो टीम ऐसा कर गई वो इस सस्पेंस को खत्म करने में कामयाब हो जाएगी। तो अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आखिर इस तिलिस्म को भेद कर कौन सी टीम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीम बनने का गौरव हासिल करेगी।